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सूली पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला, कौन है वो जिसको 70 साल पहले फांसी पर लटकाया गया था

पूरे देश में इस समय भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की चर्चा हो रही है. निमिषा को यमन में फांसी की सजा सुनाई गई है. उसको 16 जुलाई को फांसी दी जानी है, लेकिन इस फांसी को रोकने के लिए लगातार कोशिश की जा रही है. निमिषा को यमन के व्यक्ति और उनके पूर्व बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई है.

निमिषा प्रिया की कहानी तो आप सभी जान चुके हैं, लेकिन आज हम उस महिला की बात करेंगे जिनको भारत में सबसे पहले फांसी की सजा सुनाई गई थी. भारत में पूरे 70 साल पहले एक महिला को सूली पर चढ़ाया गया था. इस महिला का नाम है रतन बाई जैन. रतन बाई जैन को साल 1955 में फांसी दी गई थी. रतन न सिर्फ पहली महिला है जिनको भारत में फांसी दी गई बल्कि आज तक आजाद भारत में वो इकलौती महिला है जिसको फांसी दी गई है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 414 अपराधी मौत की सजE का इंतजार कर रहे हैं. इनमें से 13 महिलाएं हैं. हालांकि, भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहां अभी भी फांसी की सजा दी जाती है, फिर भी 1955 के बाद से भारत में किसी भी महिला को फांसी नहीं दी गई है. 1955 में रतन बाई जैन फांसी पर चढ़ने वाली पहली और एकमात्र महिला बनीं.

क्या था अपराध?

अपराधी रतन बाई जैन दिल्ली की रहने वाली थी. फांसी की सजा का नाम सुनने के बाद सभी इस सवाल का जवाब जानना चाहते होंगे कि रतन का आखिर अपराध क्या था? उसने ऐसे क्या संगीन अपराध को अंजाम दिया था कि उसको सीधे फांसी दे दी गई. दरअसल, रतन ने तीन लड़कियों की हत्या की थी. 35 साल की उम्र में इस अपराध के चलते रतन को सूली पर चढ़ाया गया था.

रतन फैमिली प्लानिंग (Sterility Clinic) क्लिनिक में मैनेजर का काम करती थी. क्लिनिक में ही वो और तीन लड़कियां भी मौजूद थी जिनकी रतन ने जान ली थी. रतन को एक दिन अचानक शक हुआ कि इन लड़कियों का उसके पति के साथ अफेयर चल रहा है. रतन का यह शक इस हद तक बढ़ गया कि उन्होंने तीनों लड़कियों की जान लेना तक का तय कर लिया.

कैसे की हत्या?

रतन ने इसी शक के चलते तीनों लड़कियों की हत्या कर दी. रतन ने न तो लड़कियों के चाकू घोंपा, न गला रेतकर उन्हें मौत के घाट उतारा बल्कि उसने इस अपराध को अंजाम देने के लिए जहर का इस्तेमाल किया. कथित तौर पर रतन ने लड़कियों के खाने या उनकी ड्रिंक में जहर मिलाया. यह जहर इतना खतरनाक था कि तीनों ही लड़कियों की फौरन मौत हो गई.

कब दी गई फांसी?

आपने जवान फिल्म देखी होगी, इस फिल्म में दीपिका पादुकोण को फांसी की सजा दी जाती है. ऐसी ही एक असल तस्वीर तिहाड़ जेल में भी 3 जनवरी को दिखाई दी थी. रतन को इस हत्याकांड में दोषी पाया गया. इस जुर्म में उसको फांसी की सजा सुनाई गई. साल 1955, तारीख 3 जनवरी, भारत के इतिहास में वो तारीख है जब पहली महिला अपराधी को फांसी की सजा दी गई. दिल्ली सत्र न्यायालय की ओर से रतन की मौत की सजा बरकरार रखे जाने के बाद पंजाब हाई कोर्ट ने भी उनकी मौत की सजा बरकरार रखी.

3 जनवरी की सुबह सभी के लिए उजाला जरूर लेकर आई होगी, लेकिन रतन के लिए इस दिन की सुबह वो अंधेरा लेकर आई कि जिसके बाद उसकी जिंदगी में कभी उजाला नहीं हुआ. ऐसा नहीं है कि रतन के बाद महिलाओं को मौत की सजा नहीं सुनाई गई, लेकिन कई महिलाओं के केस में उन्हें फांसी नहीं दी गई बल्कि सजा-ए-मौत की जगह उम्रकैद दे दी गई.

कई महिलाओं को सुनाई गई फांसी की सजा

ऐसा ही एक केस सीमा गावित और रेणुका शिंदे का है. इन दोनों बहनों ने मिलकर 13 बच्चों की किडनैपिंग की थी. साथ ही इन में से 5 बच्चों की हत्या भी कर दी थी. इन महिलाओं को कोलापुर सेशन कोर्ट और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सजा-ए-मौत सुनाई थी. महिलाओं ने इस सजा से बचने के लिए कई बार दया अपील दायर की, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी साल 2014 में उनकी दया अपील ठुकरा दी थी.

तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से उनकी दया याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद, गावित बहनों ने अपनी याचिकाओं पर निर्णय में अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इसी के बाद साल 2022 में उनको राहत मिली. उनकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया.

शबनम के प्यार की खूनी कहानी

शबनम नाम की महिला को भी फांसी की सजा सुनाई गई है. साल 2008 में शबनम और सलीम- अमरोहा हत्याकांड सामने आया था. उत्तर प्रदेश के अमरोहा में शबनम और सलीम नाम के दो प्रेमियों ने अपने प्यार के चलते परिवार की बली चढ़ा दी.

दोनों ने मिलकर परिवार के 7 लोगों की जान ले ली जिसमें 10 महीने का बच्चा भी शामिल था. मामले के सामने आने के बाद अमरोहा सेशन कोर्ट ने 2010 में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी, इस फैसले को 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट और मई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. इसी के बाद शबनम और सलीम दोनों ही इस अपराध के लिए मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं. दोनों फिलहाल जेल में बंद हैं. हालांकि, अभी तक उनको फांसी कब दी जाएगी यह सामने नहीं आया है. लंबे समय से यह मामला लंबित है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी है.

फांसी की सजा पर लंबी डिबेट

फांसी की सजा को लेकर लंबी डिबेट चलती है. कई देशों में फांसी की सजा नहीं दी जाती है. यह एक ऐसी सजा है जहां एक बार अगर इंसान को सजा दे दी गई तो वो मर जाता है और आगे चलकर केस में यह सामने आया कि वो निर्दोष था तो फिर व्यक्ति की सजा को उलटने, उसको वापस लाने का कोई तरीका नहीं बचता है.

इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि जीवन के मौलिक अधिकार से संबंधित सजा का कोई भी तरीका निष्पक्ष और उचित होना चाहिए. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, फांसी के सभी मामलों में पुनर्विचार के चरण में सीमित मौखिक सुनवाई की जरूरत होती है. इसी के चलते पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार मृत्युदंड प्राप्त व्यक्तियों को दिया गया एक अहम विशेषाधिकार है.