देवों के देव महादेव अपनी लीलाओं और वरदानों को लेकर हर शिव भक्त के मन में बसे होते हैं. वह रुद्र हैं, तो भोले भंडारी भी हैं और अपने भक्तों पर सदा दृष्टि रखने वाले हैं. सावन कृष्ण पक्ष का दूसरा सोमवार कल विशेष शुभ संयोगों के बीच देशभर में मनाया गया. पवित्र सावन मास में कांवड़ियों द्वारा भगवान भोलेनाथ का अभिषेक नर्मदा और गंगाजल से भी किया जा रहा रहा है. वहीं, मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में स्थित 500 साल पुराना श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ दर्शन करने उमड़ रही है. इसका कारण है यहां विराजमान स्वयंभू शिवलिंग.
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार, इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग भी बड़ा चमत्कारी है, जिसकी जलाधारी में 24 घंटे जल बना रहता है. साथ ही, यह शिवलिंग हर साल मकर संक्रांति पर तिल के आकार में बढ़ता है. इसलिए इसका नाम तिलभांडेश्वर महादेव पड़ा है. आइए इस मंदिर से जुड़ी कुछ और बातें जानते हैं.
तिलभांडेश्वर मंदिर का इतिहास क्या है?
तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो हर साल एक तिल के बराबर बढ़ता है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां ऋषि भांडव ने भगवान शिव की तपस्या की थी और शिवलिंग पर तिल चढ़ाए थे. तभी से यह हर साल तिल के आकार में बढ़ता है. सावन के महीने में इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और यहां भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं. कहते हैं कि यह मंदिर सतयुग से अस्तित्व में है. इस मंदिर में लक्ष्मी-नारायण, मां दुर्गा और बजरंग बली की मूर्तियां भी स्थापित हैं.
तिलभांडेशवर मंदिर के मुख्य पुजारी ललितेश्वर भट्ट और भवनेश्वर भट्ट ने बताया कि श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर शहर के मध्य में स्थित है. मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब से यह शहर अस्तित्व में भी नहीं था तब से यह स्वयंभू प्रकट शिवलिंग है, जिसकी जलाधारी में 24 घंटे जल बना रहता है. कितनी भी भीषण गर्मीं पड़े, यह जल कभी सूखता नहीं है. 12 महीने और 24 घंटे हमेशा जलाधारी जलमग्न रहती है.
पुजारी जी ने बताया कि महादेव की सेवा करते हुए यह हमारी 11वीं पीढ़ी चल रही है. हमारे पूर्वज बताते हैं कि जब यहां महादेव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे तो बहुत छोटे स्वरूप में थे. तब से लेकर मकर संक्रांति के दिन हर साल भोले बाबा तिल के आकार में बढ़ते रहते हैं. यह भगवान शिव का साक्षात चमत्कार है, जो उनके भक्तों को दर्शन देता है. मंदिर समिति के करूणाशंकर भट्ट, आदित्य व्यास और आदर्श भष्ट ने बताया कि मंदिर काले पत्थर से बना हुआ है और इसके शिखर पर श्रीयंत्र की आकृति बनी हुई है.