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पीएम मोदी ने चोल साम्राज्य को यूं ही नहीं दी अहमियत… इतिहासकार क्यों बोले- इतिहास पर दोबारा सोचने की जरूरत?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में आदि तिरुवथिरई महोत्सव के साथ महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की 1000वीं जयंती समारोह में शामिल हुए. साथ ही गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में भी पूजा की. इस दौरान उन्होंने चोल साम्राज्य का इतिहास और उसकी विरासत को भारत के वास्तविक सामर्थ्य का प्रतीक बताया. पीएम की ओर से चोल साम्राज्य को अहमियत देने को लेकर अर्थशास्त्री और इतिहासकार संजीव सान्याल ने अपनी बात रखी है. उनका कहना है कि उत्तर भारत में मुस्लिम शासन के दौरान चोल साम्राज्य ने अपनी धाक जमाई थी. हालांकि इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. इतिहास का अध्ययन दिल्ली-केंद्रित रहा है.

एक समाचार चैनल से बात करते हुए सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार सान्याल ने कहा ने कहा, ‘हमें अपने इतिहास पर पुनर्विचार करना होगा और अपने महान पूर्वजों को एक ऊर्जावान व्यक्ति के रूप में देखना होगा. हमारे पूर्वजों ने बड़े-बड़े मंदिर बनवाए, जरूरत पड़ने पर पूरे नए शहर बसाए. ये सशक्त और जोखिम उठाने वाले लोग थे और विदेशी आक्रमणकारियों से युद्ध करने से खुश रहते थे. ये निष्क्रिय लोग नहीं थे. हमारे इतिहास में इस्लाम-पूर्व इतिहास में हम जिस एकमात्र व्यक्ति का सम्मान करते हैं, वह अशोक हैं.’

भारत के पश्चिमी तट का इतिहास अद्भुत’

उन्होंने कहा, ‘उन्हें खुशी है कि चोलों का सम्मान किया जा रहा है, लेकिन वे अकेले ऐसे लोग नहीं थे जिन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास पर अपनी छाप छोड़ी थी. तमिलनाडु में भी कई अन्य लोग हैं. उसके पड़ोसी राज्य केरल से पांड्य और चेर रहे हैं. इसके अलावा पल्लव, फिर गजपति और कलिंग के सभी राजा जिनके दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ महान समुद्री संबंध रहे. भारत के पश्चिमी तट का रोमन साम्राज्य वगैरह के साथ संबंधों का अद्भुत इतिहास है. देश के हर हिस्से का इतिहास अद्भुत है, लेकिन किसी तरह हम इस दिल्ली-केंद्रित दृष्टिकोण से ग्रस्त हैं कि हमें बिरयानी के लिए मुगलों का आभारी होना चाहिए.’

चोल साम्राज्य पर पीएम मोदी ने क्या कहा?

वहीं, पीएम मोदी ने चोल साम्राज्य का जिक्र करते हुए कहा कि चोल राजाओं ने अपने राजनयिक और व्यापारिक संबंधों का विस्तार श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक किया था. उन्होंने भारत को सांस्कृतिक एकता में पिरोया था. आज हमारी सरकार, चोला युग के उन्हीं विचारों को आगे बढ़ा रही है. काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे आयोजनों के माध्यम से हम एकता के सदियों पुराने सूत्रों को और अधिक मजबूत कर रहे हैं. चोल युग में भारत ने जिस आर्थिक और सामरिक उन्नति का शिखर छूआ है, वो आज भी हमारी प्रेरणा है. राजराजा चोल ने एक पावरफुल नेवी बनाई. राजेंद्र चोल ने इसे और सुदृढ़ किया.