Local & National News in Hindi
ब्रेकिंग
मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला, बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ... घर के बाहर से लापता हुई मासूम बच्ची, महिला कोतवाल ने परिजनों से कहा- यमुना नदी में ढूंढ लो, मिल जाएग... मामा ने भांजी से ही की शादी, अनाथ हो गई तो घर लाया था; फिर उसी से कर बैठा इश्क ED क्यों बन रही राजनीतिक हथियार…सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी को लेकर फिर उठाए सवाल कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के बर्थडे पर प्रियंका गांधी ने बनाया शुगर फ्री खजूर केक, ऐसे मना जश्न ‘भूखे रहने से तो मरना ठीक…’ तड़पते मां-बाप ने गंगा में लगाई छलांग, बेटों ने कई दिन से नहीं दिया था ख... बंगाली विरोधी, अबकी बार खाड़ी में फेंकेंगे… ममता-अभिषेक ने क्या-क्या कह बीजेपी को कोसा नैना देवी मंदिर में लाउडस्पीकर, ढोल-नगाड़े और बैंड बजाने पर लगा बैन… जानें क्या है कारण? दुकानदार के सामने युवक ने चाकू से फाड़ दिया 32 हजार का लहंगा और दे डाली धमकी… मच गया बवाल ‘तेरी बीवी मेरी गर्लफ्रेंड है…’ बॉयफ्रेंड ने खुद पति को बताया, फिर दोनों ने मिलकर महिला और 3 बच्चों ...

कब पिघलेंगे RJD और कांग्रेस! महागठबंधन में आने के लिए ओवैसी को अभी और क्या-क्या करना पड़ेगा

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गठजोड़ बनाने का सिलसिला जारी है. असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई में AIMIM लंबे समय से इस कोशिश में थी कि वह बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अगुवाई वाले महागठबंधन का हिस्सा बन जाए. लेकिन पार्टी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी. अब सूत्रों के हवाले से खबर है कि RJD और कांग्रेस ने असदुद्दीन ओवैसी के बगैर इस बार भी बिहार की चुनावी वैतरणी को पार करने का फैसला लिया है.

असदुद्दीन ओवैसी ने साल 2020 के चुनाव में भी RJD और कांग्रेस के साथ बिहार में आगे बढ़ने की योजना बनाई थी, लेकिन तब भी उसे साथ नहीं रखा गया था. ओवैसी अभी भी देश में सेकुलर कही जाने वाली पार्टियों के लिए अछूत बनी हुई है. यह स्थिति तब है जब ओवैसी ने पिछले कुछ महीनों में अपनी छवि काफी बेहतर की है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ओवैसी ने पाकिस्तान की जमकर आलोचना की और उनकी पहचान बड़े देशभक्त के रूप में बनी. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर वो कब तक सेकुलर दलों के बीच अछूत बने रहेंगे.

ओवैसी से दूरी और परहेज बरकरार

सेकुलर दलों का ओवैसी से दूरी और परहेज अभी भी कायम है. ओवैसी को सेकुलर दलों का दिल जीतने और उनके साथ आने के लिए आखिर क्या करना होगा. जबकि हाल के दिनों में ओवैसी ने जिस तरह की अपनी इमेज बनाई है वो सेकुलर दलों के लिहाज से बहुत ज्यादा मुफीद है.

22 अप्रैल की दोपहर जब आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम पर धर्म और नाम पूछकर लोगों पर गोलियां बरसाईं और 26 लोगों को मार डाला. इस आतंकी वारदात के बाद ओवैसी काफी मुखर हो गए थे. इस घटना को लेकर ओवैसी ने पाकिस्तान को कई बार जमकर लताड़ा भी. यही नहीं उन्होंने पड़ोसी मुल्क को उसकी आतंकी गतिविधियों के लिए खूब खरी-खोटी भी सुनाई थी. आतंकी हमले के बाद कश्मीर घाटी के हालात को सही करने और लोगों को संदेश देने के लिए वह खुद वहां गए भी. भारतीय सेना ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के जरिए जब जवाबी कार्रवाई की तो ओवैसी भी अपनी सेना का उत्साह बढ़ाने वालों में सबसे आगे थे.

विदेशी धरती पर ओवैसी, और भारत का पक्ष

ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब दुनियाभर में पाकिस्तान की पोल खोलने के मकसद से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे तो उसमें असदुद्दीन ओवैसी का नाम भी शामिल किया गया. बीजेपी सांसद बैजयंत पांडा की अगुवाई में इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने खाड़ी के जिन देशों का दौरा किया वो मुस्लिम बहुल देश हैं. प्रतिनिधिमंडल के साथ गए ओवैसी ने अल्जीरिया, सऊदी अरब, कुवैत और बहरीन का दौरा किया और अपने मुखर अंदाज में पाकिस्तान की परत दर परत खोली. पाकिस्तान किस तरह भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है, उसे भी बेबाकी से लोगों के सामने रखा.

आतंकवाद को लेकर ओवैसी ने अपने इस जोशीले अंदाज से आलोचकों को भी अपना मुरीद बना दिया. देश में उनकी छवि एक सशक्त राष्ट्रभक्त के रूप में उभरी. खास बात यह रही कि जब यह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल अपना काम पूरा कर स्वदेश लौटा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनके सम्मान में भोज का आयोजन किया तो ओवैसी इसमें शामिल नहीं हुए. ओवैसी ने इस भोज से दूरी बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की बात जब देश की आती है तो वो हमेशा देशसेवा के लिए तैयार हैं. लेकिन राजनीतिक स्तर पर उनके मतभेद बने रहेंगे.

केंद्र के कई फैसलों के खिलाफ ओवैसी

साथ ही ओवैसी केंद्र सरकार की कई नीतियों के खिलाफ खुलकर बोलते रहे हैं जिनका महागठबंधन खासकर सेकुलर दल भी विरोध करते हैं. सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) हो, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) हो, तीन तलाक हो या फिर वक्फ का मसला हो, हर मसले पर ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM ने खुलकर आलोचना की. साथ ही हाल ही में बिहार में चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ वह लगातार बोल रहे हैं. उन्होंने इस प्रोसेस को बैक डोर NRC करार दिया.

2020 में साथ लेते तो तेजस्वी होते CM

इसके अलावा ओवैसी के पक्ष में एक और बात जाती है जो है 2020 के चुनाव में शानदार प्रदर्शन. उस चुनाव से पहले भी ओवैसी महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहते थे, लेकिन लालू ने साथ नहीं लिया. इसका खामियाजा भी महागठबंधन ने भुगता. चुनाव में 5,25,679 वोटा (1.66%) हासिल कर ओवैसी की पार्टी ने 5 सीट अपने नाम कर ली थी. ये सभी सीटें उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र सीमांचल में मिले. इसके अलावा 4 सीटों पर AIMIM का प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा था.

AIMIM को साथ नहीं लेने का नुकसान महागठबंधन को सीधे तौर पर हुआ. एनडीए को चुनाव में 1,57,01,226 वोट मिले जबकि महागठबंधन को 1,56,88,458 आए. दोनों के बीच वोटों का अंतर 12,768 वोट का ही रहा, इस तरह से महागठबंधन बहुमत के करीब पहुंचकर अटक गया. एनडीए को 125 सीटें मिलीं जबकि महागठबंधन को 110 सीटों पर जीत मिली. चुनाव में 52 सीटें ऐसी रही जहां पर हार-जीत का अंतर 5 हजार से भी कम वोटों का रहा. अगर ओवैसी को साथ लेकर तेजस्वी चुनाव मैदान में उतरते तो उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना साल 2020 में ही पूरा हो जाता.

ओवैसी के लिए मंजिल अभी दूर

ओवैसी जिस तरह की राजनीति करते हैं वो बिहार के सेकुलर दलों से मिलता-जुलता है. सूत्रों के मुताबिक, आरजेडी और कांग्रेस नेतृत्व ने किसी भी सांप्रदायिक दल के साथ समझौता नहीं करने का फैसला किया है. ये दल ओवैसी की पार्टी को बीजेपी की बी टीम बताते रहे हैं. खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी एक दिन पहले ही धर्म के आधार पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का रजिस्ट्रेशन रद्द करने से मना कर दिया.महागठबंधन का कहना है कि अगर ये लोग तीसरा मोर्चा बनाते हैं तो ये बात भी महागठबंधन जनता के बीच ले जाएगा कि ये मोर्चा बीजेपी के फायदे के लिए बनाया गया है.

सियासत से इतर ओवैसी की छवि काफी बेहतर और बेबाक नेता के रूप में मानी जाती है, जबकि सियासत के मैदान में सेकुलर दल अभी भी ओवैसी और AIMIM से दूरी बनाए रखने में अपनी भलाई समझते हैं. ओवैसी ने पिछले कुछ समय में जिस तरह से अपनी छवि बनाई है, उससे यही लगता है कि उनकी पार्टी आखिर कब तक सेकुलर दलों के लिए अछूत बनी रहेगी और उनका दिल जीतने के लिए ओवैसी को अभी और क्या-क्या करना पड़ेगा.