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मुसलमानों में ही मच जाती मार काट! अमेरिका का सीजफायर कैसे बना ईरान के लिए संजीवनी?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान और इजराइल के बीच सीजफायर करा दिया है. उनके इस कदम से मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव पर विराम लग गया. युद्धविराम ऐसे समय हुआ जब ये तनाव ईरान और इजराइल से बाहर निकलकर मिडिल ईस्ट के अन्य देशों में भी पहुंच गया था. ट्रंप के ऐलान से कुछ देर पहले ही ईरान ने कतर में अमेरिका के ठिकानों को निशाना बनाया था. जिसपर सऊदी अरब भी भड़क गया था. मतलब इजराइल और ईरान के बीच शुरू हुई इस लड़ाई में मुस्लिम देश भी आमने-सामने आ गए थे. बात और बढ़ती तो एक-दूसरे पर हमले तक भी पहुंच जाती.

ईरान और इजराइल के बीच ये जंग 12 दिन तक चली. 13 जून को ईरान पर इजराइल के हमले से इसकी शुरुआत हुई थी. 13 तारीख को हुए इस हमले में ईरान के कई न्यूक्लियर साइंटिस्ट और सैन्य अधिकारी मारे गए थे. अपने ऊपर हुए इस वार से ईरान भड़क गया था. उसने इजराइल पर पलटवार किया और तेल अवीव को खासतौर से निशाना बनाया.

ईरान और इजराइल के बीच जंग ही चली रही थी कि इसमें अमेरिका भी कूद गया. उसने ईरान में हमला किया. उसके परमाणु ठिकानों को नुकसान पहुंचाने का दावा किया गया. अमेरिका का हमला ईरान को बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने मिडिल ईस्ट में अमेरिकी ठिकानों को टारगेट पर लिया और सोमवार को कतर में हमला किया.

सऊदी को रास नहीं आया ईरान का हमला

ईरान ने सोमवार की रात को कतर में अमेरिकी मिलिट्री बेस पर एकसाथ कई मिसाइलें दागीं. रिपोर्ट की मानें तो ईरान ने 19 मिसाइलें दागीं, जिसमें से 18 को डिफेंस सिस्टम ने आसमान में ही खत्म कर दिया. ईरान का ये कदम सऊदी अरब को रास नहीं आया. उसने कड़े शब्दों में निंदा की.

सऊदी अरब ने कहा कि ये गैर जिम्मेदाराना कदम है, जिसे किसी भी हालात में सही नहीं ठहराया जा सकता है. वहीं, कतर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माजेद अल अंसारी ने कहा कि ईरान का हमला कतर की संप्रभुता पर हमला है. अंसारी ने कहा कि कतर के पास हमले का जवाब देने का पूरा अधिकार है. कतर और सऊदी के बयान से साफ है वो ईरान के हमले को बर्दाश्त नहीं कर रहे थे. सीजफायर नहीं होता तो वो ईरान के खिलाफ कोई कदम भी उठा सकते थे.

जब ईरान-इराक में हुई थी जंग

सऊदी-कतर अगर जंग में कूदते तो 1980 की यादें ताजा हो जातीं. ये वो दौर था जब दो बड़े मुस्लिम मुल्कों की लड़ाई हो रही थी. बात ईरान और इराक के बीच जंग की हो रही है. 8 साल तक ये जंग चली थी. 22 सितंबर 1980 को इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला करके जंग की शुरुआत कर दी.

सद्दाम का मकसद उस समय ईरान में इस्लामिक क्रांति का फायदा उठाना और शत-अल-अरब नदी वाले इलाकों पर कब्जा जमाना था. इस युद्ध में करीब पांच लाख लोग मारे गए. दरअसल, इराकियों ने ईरानी सैनिकों के विरुद्ध बेहद खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिनमें मस्टर्ड गैस सबसे ज्यादा घातक थी. इस गैस की वजह से हजारों नागरिकों और सैनिकों की जान गई. लाखों लोग घायल और विस्थापित हुए. 1988 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई थी.

खामेनेई की सत्ता और जान दोनों बची

इस सीजफायर से ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई की सत्ता और जान दोनों बच गई. इजराइल और अमेरिका का मकसद खामेनेई को सत्ता से हटाना भी था. लेकिन जंग पर विराम लगने के बाद खामेनेई की सत्ता फिलहाल के लिए बच गई है. यही नहीं उनकी जान भी बची है, क्योंकि 12 दिनों की जंग में कई बार ऐसे मौके आए जब कहा गया कि खानेनेई की जान खतरे में है. इजराइल उनपर हमला कर सकता है. कहा ये भी गया कि जान बचाने के लिए खामेनेई बंकर में छिप गए. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वो संचार के किसी भी माध्यम का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.