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पोल यहीं गड़ेगा… और बिछ गईं 27 लाशें, दिल दहला देगा 1991 का वो भयावह सच; बिजली की लाइन के लिए हुआ था खूनी संघर्ष

भागलपुर जिला सिर्फ 1989 दंगा या आंखफोड़वा कांड के लिए ही नहीं बल्कि, पहली बार एक गांव में बिजली आने को लेकर हुए खूनी संघर्ष की वजह से भी जाना जाता है. आज जिस बिजली की महत्वता को हम नहीं समझ पा रहे हैं. उस बिजली के लिए भागलपुर के एक गांव में करीब दो दशक तक लड़ाई चली और 21 लोगों को जान गवानी पड़ी थी. यह खूनी संघर्ष महज बिजली के एक पोल को लेकर शुरू हुआ था.

यह घटना भागलपुर के कोइली व खुटहा गांव की है, जहां के लोग अब भी इस पूरे घटनाक्रम को याद कर सिहर जाते हैं. 90 के दशक के उस दौर को भूलना चाहते हैं. गांव का हर व्यक्ति इस घटना को बयां करने में असहज महसूस कर रहा था. सभी ने एक ही बात कही पुराने जख्म को मत कुरेदिए. एक घर के समीप एक गुट के लोग गोला बारूद से लैस होकर हमला कर थे. वर्तमान में वह गांव के मुखिया देवेंद्र यादव हैं जिन्होंने आर्मी से बीआरएस लेकर मुखिया का चुनाव लड़ा था ताकि यहां की तस्वीर बदल सके.

घटना को लेकर खुटहा के मुखिया देवेंद्र यादव ने कहा कि यह कहानी साल 1991 की है. जब गांव में पहली बार बिजली आने वाली थी और यहां एक पोल गाड़ने के लिए दो गांव के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई थी. तब मैं महज 9 से 10 साल का था. लालू यादव की सरकार थी और बिजली का पोल कोइली गांव के पोखर के समीप गिरा था, लेकिन कुछ लोगों ने उस पोल को रात में चुरा लिया. इसके बाद यह विवाद बढ़ गया.

कई लोगों के खिलाफ दर्ज हुआ था केस

कोइली गांव के लोगों ने खुटहा गांव के लोगों के ऊपर एफआईआर दर्ज करा दी. इसके बाद दोनों के बीच विवाद बढ़ गया और जब पोल गाड़ने की बारी आई तब दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो गई. दोनों गांव के लोगों का कहना था कि जो जीतेगा उसी के यहां पोल गड़ेगा. जिसके बाद दोनों गांव के लोग गांव से महज 500 मीटर की दूरी पर चिचोरी पोखर के पास इकट्ठा हो गए और फिर वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई, जिसमें 1991 में ही पहली हत्या हुई थी.

घटना में एक पक्ष इस पोखर पर तो दूसरा वर्तमान मुखिया देवेंद्र यादव के घर के समीप जुटा, देवेंद्र यादव ने बताया कि सुबह से दोनों गांव में गोलीबारी शुरू हो गई. दोनों ओर से राइफल, मास्केट समेत अन्य हथियार से जमकर फायरिंग शुरू हुई. गांव गोला बारूद की ढेर में तब्दील हो गया. गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज रहा था. दोनों तरफ से खूब गोलियां चली और पहली हत्या रंजीत यादव की हो गई. इसकी सूचना पुलिस को मिली लेकिन पुलिस भी गांव के अंदर प्रवेश नहीं कर पाई. हत्या के बाद दोनों गांव के बीच दुश्मनी और भी बढ़ गई. दोनों पक्ष के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए, जहां मौका मिलता वहीं हमला कर दिया जाता था.

27 लोगों को हुई थी उम्रकैद

उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में 27 लोगो को उम्रकैद हुई थी, एक को फांसी की सजा हुई थी. लेकिन अब लगभग लोग इससे बरी हो गए और फांसी की सजा भी बाद में रुक गई थी. या पूरी घटना महज लोगों के पढ़े लिखे नहीं होने की वजह से घटित हुई. जिसकी वजह से यह गांव विकास की राह में काफी पीछे चला गया था. उन्होंने बताया कि अगर किसी गांव में ऐसा कुछ होता है तो बात से मामला सुलझा लेना चाहिए. गांव का विकास पूर्ण रूप से रुक जाता है.

क्या बोले गांव के मुखिया?

मुखिया देवेंद्र यादव ने बताया कि अब स्थिति काफी बदल गई है. गांव काफी समृद्ध हो गया है, विकास की राह पर आगे चल रहा है. यहां के घर-घर के लोग शिक्षा से जुड़े हैं और घर-घर सरकारी नौकरियों की बौछार है. आर्मी, बिहार पुलिस, झारखंड पुलिस, बंगाल पुलिस, बीडीओ, सीओ समेत कई बड़े पद पर यहां के लोग सेवा दे रहे हैं.