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गैर-मुस्लिमों के वक्फ बनाने के सवाल पर क्यों सुप्रीम कोर्ट में माहौल हुआ तल्ख, जानें

वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर आज लगातार तीसरे दिन सुनवाई शुरू हो गई है. सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ इस मामले को सुन रही है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की तरफ से दलील देना सुरू कर दिया है. आज की सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि किसी के लिए भी मुद्दा उठाना मुश्किल नहीं है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि इस पर बहस की जा सकती है, इसका मतलब यह नहीं है कि ये विधायिका की तरफ से पारित कानून की वैधता पर रोक लगाने योग्य है.

मेहता ने कहा कि वक्फ अल्लाह के लिए है, ये हमेशा के लिए है. अंतरिम आदेश के मकसद से, अगर इसे असंवैधानिक पाया जाता है, तो इसे रद्द किया जा सकता है. लेकिन अगर वक्फ है, तो वह वक्फ ही रहेगी. जेपीसी ने कहा है कि आदिवासी इस्लाम का पालन कर सकते हैं, लेकिन उनकी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है. मेहता ने कहा कि कानून गैर-मुस्लिम को वक्फ दान देने से वंचित नहीं करता. यही कारण है कि 5 साल -आपको यह दिखाना होगा कि आप मुस्लिम हैं और वक्फ के इस तरीके का इस्तेमाल धोखाधड़ी के लिए नहीं करते हैं.

आज के लाइव अपडेट्स

1. मेहता ने कहा कि 1923 से 2013 तक-कोई भी मुस्लिम वक्फ बना सकता था. 2013 में कोई भी मुस्लिम हटा दिया गया और कोई भी व्यक्ति डाल दिया गया. इस पर न्यायधीश मसीह ने कहा कि ये इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति तक ही सीमित था. मेहता ने कहा कि अगर मैं हिंदू हूं और वाकई वक्फ बनाना चाहता हूं, तो मैं ट्रस्ट बना सकता हूं. अगर हिंदू मस्जिद बनाना चाहता है, तो वक्फ क्यों बनाए, जब आप सार्वजनिक धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट बना सकते हैं तो फिर कुछ और क्यों.

2. आज की सुनवाई के दौरान एक मौका ऐसा भी आया जब सॉलिसिटर जनरल की बात का विरोध याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हो रहे वकील कपिल सिब्बल ने किया. मेहता ने कहा कि 2013 में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बनाने की अनुमति दी गई थी. जबकि 1923 से 2013 तक ऐसा नहीं था. मेहता की बात पर सिब्बल ने विरोध जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं है, 2010 में ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि गैर-मुस्लिम व्यक्ति भी वक्फ बना सकता है.