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मरे हुए लोगों को बार-बार काट रहा सांप! फिर हो रहा मुआवजे का खेल, अधिकारियों की जेब में 11 करोड़

मध्य प्रदेश को यूं ही सबसे अजब-गजब नहीं कहा जाता है. यहां के घोटाले भी अजीबोगरीब होते हैं. हाल ही में चम्मच घोटाला, डामर घोटाला और नगर निगम कचरा घोटाले के साथ-साथ बिहार की तर्ज पर धान घोटाला चर्चा में आया था और अब सिवनी जिले में सर्पदंश घोटाला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक व्यवस्था की लापरवाही और भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है. इस घोटाले में 47 मृत व्यक्तियों के नाम पर बार-बार फर्जी मृत्यु का दावा कर शासन की राशि का गबन किया गया.

इस गबन की कुल राशि 11 करोड़ 26 लाख रुपये बताई जा रही है. इस घोटाले को एक नहीं बल्कि कई कर्मचारी और अधिकारियों ने मिलकर किया. आरोपी सचिव सहायक ने तहसील और जिला स्तर पर मौजूद अन्य अधिकारियों की मिलीभगत से शासन के वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (IFMS) को गुमराह किया. जांच में सामने आया है कि मृत व्यक्तियों के नाम पर बिना मृत्यु प्रमाण पत्र, पुलिस वेरिफिकेशन और पीएम रिपोर्ट के ही बिल पास किए जाते रहे.

सांप काटने से मृत्यु पर मिलता 4 लाख का मुआवजा

बता दे कि सरकार सांप काटने से मृत्यु होने पर 4 लाख रु का मुआवजा देती है.रमेश नाम के शख्स को 30 बार अलग-अलग दस्तावेजों में मृत बताया गया. वह भी हर बार सांप के काटने से. ऐसा करके भ्रष्ट अधिकारियों ने 1 करोड़ 20 लाख रुपये का गबन किया.इतना ही नहीं रामकुमार नाम के शख्स को सरकारी दस्तवाजों में भी 19 बार मरा हुआ दिखाया गया.यह घोटाला साल 2019 से शुरू हुआ और 2022 तक जारी रहा यानी कमलनाथ सरकार में शुरू हुआ भ्रष्टाचार का सिलसिला शिवराज सरकार तक चला.

कई बड़े अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध

द रॉयल सोसाइटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन जनरल की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 से 2022 के बीच यानी दो साल में मध्यप्रदेश सरकार ने सांप के काटने पर 231 करोड़ रुपए का मुआवजा बांटा था. घोटाले के मामले में सबसे खास बात यह है कि इस मामले में सहायक सचिव के साथ 46 अन्य लोगों के नाम सामने आए हैं, जिनमें तत्कालीन एसडीएम अमित सिंह और पांच तहसीलदारों की भी भूमिका संदिग्ध पाई गई है. जांच के दौरान यह भी सामने आया कि इन अधिकारियों की आईडी और अधिकारों का दुरुपयोग कर फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए और उसी आधार पर कोषालय स्तर से भुगतान भी पास हुआ.

निजी खातों में भेजी गई राशि

जांच अधिकारी के मुताबिक मुख्य आरोपी ने अपने परिवार, दोस्तों और जान-पहचान वालों के खातों में राशि ट्रांसफर की. जांच रिपोर्ट में यह साफ हुआ कि शासन की राशि सीधे लाभार्थी खातों में न जाकर, निजी खातों में पहुंचाई गई. इससे साफ है कि यह गबन सुनियोजित और संगठित तरीके से किया गया. जबलपुर संभाग के वित्त विभाग की विशेष टीम द्वारा की गई जांच में यह खुलासा हुआ. जांच अधिकारी, संयुक्त संचालक रोहित सिंह कौशल ने बताया कि यह रिपोर्ट अब सिवनी कलेक्टर को भेज दी गई है, जो आगे की कार्रवाई करेंगे.

घोटाले से प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

अभी तक इस पूरे मामले में सिर्फ एक ही गिरफ्तारी सहायक सचिव की ही हुई है, जबकि अन्य आरोपियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इस घोटाले ने शासन की IFMS प्रणाली, तहसील प्रशासन और जिला कोषालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं. एक ही व्यक्ति को बार-बार मरा हुआ दिखाकर फर्जी बिल पास होते रहे और तीन स्तरों पर होने वाले बिल वेरिफिकेशन के बावजूद किसी को संदेह तक नहीं हुआ.

अब देखना होगा कि दोषी अधिकारियों पर कब तक ठोस कार्रवाई होती है और करोड़ों की इस सरकारी राशि की वसूली किस तरह की जाती है.