Breaking News in Hindi
ब्रेकिंग
कांग्रेस का तीखा सवाल! '7 महीने में 41 भारतीय मारे गए, जिम्मेदार कौन?' पहलगाम के बाद दिल्ली ब्लास्ट ... धमाके के बाद सिर्फ़ शरीर नहीं, दिमाग भी होता है घायल! क्या होता है PTSD, जानें इस खौफनाक मानसिक बीमा... बिहार में वोटिंग ने पकड़ी तेज रफ्तार! दोपहर 3 बजे तक 60.40 फीसदी मतदान, क्या टूट पाएगा पिछले बार का ... प्रदूषण का कहर! ग्रैप 3 लागू होते ही दिल्ली में $5$वीं तक के स्कूल 'हाइब्रिड मोड' में, NCR में भी जल... दिल्ली ब्लास्ट का सीधा PAK कनेक्शन! फरीदाबाद से गिरफ्तार डॉक्टर शाहीना निकली जैश-ए-मोहम्मद की आतंकी,... i20 कार का $11$ घंटे का 'डेथ रूट'! दिल्ली ब्लास्ट की साजिश का पूरा मैप सामने, जांच एजेंसियां कर रही ... बिहार चुनाव का आखिरी इम्तिहान! 3.70 करोड़ मतदाता, 122 सीट और 1302 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला आज, ... नहीं बचेगा कोई गुनहगार! रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- दिल्ली ब्लास्ट के दोषियों पर होगी कड़ी कार्... सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की क्यूरेटिव याचिका मंजूर, जेल से होग... बिहार चुनाव के बीच सीक्रेट मीटिंग! नीतीश कुमार का ललन सिंह के घर अचानक पहुंचना, फिर पार्टी दफ्तर जान...

25 साल सर्विस के बाद हटाया गया कर्मचारी कोर्ट के फैसले से फिर बहाल

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 25 साल से ज्यादा की सर्विस के बाद बर्खास्त किए गए विश्वविद्यालय कर्मचारी को फिर से बहाल कर दिया. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और मुख्य न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई की. कोर्ट ने फैसला सुनाया कि उसकी नियुक्ति केवल अनियमित थी और अवैध नहीं थी.

साथ ही बाद में सर्विस के कंफर्म करके उनके पद को नियमित कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि कंफर्म किए गए कर्मचारियों को उचित जांच के बिना बर्खास्त नहीं किया जा सकता, भले ही प्रारंभिक नियुक्ति अनियमित रही हो.

नरेंद्र त्रिपाठी 1998 से बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल में कार्यरत थे. 16 दिसंबर 1998 को विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से नरेंद्र त्रिपाठी को परियोजना अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था. वेतनमान 5500-9000 रुपये निर्धारित किया गया था 25 साल से ज्यादा की सर्विस के बाद, उन्हें 30 मई 2012 के आदेश के माध्यम से सेवा में स्थायी किया गया था.

उन्हें छठे और सातवें वेतन आयोग के संशोधित वेतनमानों का लाभ भी दिया गया था. इसके अलावा, उन्हें राज्य सरकार द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया गया था और 2017 में उन्हें पीएचडी करने की अनुमति दी गई थी.

आरक्षण नियम के उल्लंघन का आरोप

हालांकि, 21 फरवरी 2024 को विश्वविद्यालय ने उनकी सर्विस खत्म करने का आदेश पारित किया. सर्विस समाप्ति आदेश के अनुसार, त्रिपाठी की प्रारंभिक नियुक्ति को अवैध करार दिया गया. क्योंकि उन्हें भर्ती करते समय विश्वविद्यालय के नियमों का पालन नहीं किया गया था. इसके अलावा आदेश में कहा गया कि उनकी नियुक्ति में आरक्षण नियमों का उल्लंघन किया गया था.

भगवान राजपूत नामक शख्स ने त्रिपाठी की प्रारंभिक नियुक्ति को चुनौती देते हुए दायर की गई क्वो-वारंटो याचिका के बाद सर्विस समाप्ति आदेश पारित किया गया था. उस मामले में, विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि त्रिपाठी की नियुक्ति कानूनी नहीं थी.

अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया. यह देखते हुए कि यदि नियोक्ता स्वयं मानता है कि नियुक्ति अवैध थी, तो किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं थी. इसके बाद विश्वविद्यालय ने बिना किसी कारण बताओ नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए, तुरंत सर्विस आदेश जारी कर दिया.